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बुरे तुम भी हो बुरे हम भी हैं

बुरे तुम भी हो , बुरे हम भी हैं , थोड़ी खुशियाँ भी हैं थोड़े ग़म भी हैं | राह ए ज़िन्दगी आसान नहीं मुसाफिर , उकताए तुम भी हो, उकताए हम भी हैं || क्यों बढ़ रहीं हैं ख्वाहिशें आसमान छूने की , परिंदों की तरह उन्मुक्त गगन में नाचने की - झूमने की, मनचाही उड़ान से स्वयं रूबरू होने की, वतन के आँचल को मोतियों से पिरोने की, अकुलाये तुम भी हो, अकुलाये हम भी हैं, एक जज़्बा - कुछ कर गुजरने का | वतन के लिए फिर जी के मरने का, संजोये तुम भी हो, संजोये हम भी हैं || © Swapnil www.facebook.com/king.swapnil