बुरे तुम भी हो बुरे हम भी हैं


बुरे तुम भी हो, बुरे हम भी हैं,
थोड़ी खुशियाँ भी हैं थोड़े ग़म भी हैं |
राह ए ज़िन्दगी आसान नहीं मुसाफिर,
उकताए तुम भी हो, उकताए हम भी हैं ||

क्यों बढ़ रहीं हैं ख्वाहिशें आसमान छूने की,
परिंदों की तरह उन्मुक्त गगन में नाचने की - झूमने की,
मनचाही उड़ान से स्वयं रूबरू होने की,
वतन के आँचल को मोतियों से पिरोने की,

अकुलाये तुम भी हो, अकुलाये हम भी हैं,
एक जज़्बा - कुछ कर गुजरने का |
वतन के लिए फिर जी के मरने का,
संजोये तुम भी हो, संजोये हम भी हैं || © Swapnil

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