कविता
मेरी साँसों में महकती एक महक हो तुम,
मेरे साहस में चमकती चहक की चषक हो तुम ।
मेरे ख्वाबों के आइने में अनसुलझी पहेली हो तुम
निगाहें पूछ रही हैं, मेरीं, कौन हो तुम – कौन हो तुम ।।
मेरे दृढ संकल्प की एक कडी़ हो तुम,
या अंबर की अप्सरा – परी हो तुम ।
निराशा में विश्वास की अविरल घडी़ हो तुम,
तुम ही बता दो, कौन हो तुम – कौन हो तुम ।।
जब मै टूट जाता हूँ तो मेरा सुदृढ निश्चय हो तुम,
जब मैं विस्मित हो जाता हूँ, मेरा आत्म परिचय हो तुम ।
साँझ सी सुमधुर, शाश्वत सुरों सी, सत्य या स्वप्निल हो तुम,
गगन की गर्जना, या हो तुम शक्ति का रूप , कौन हो तुम – कौन हो तुम ।।
To be continued....... (c) Swapnil / Sameer
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